वैशाखी पूर्णिमा का महत्व
वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा में वैशाखी पूर्णिमा का भी महात्म्य है । इस दिन विधि-विधान से श्री हरि विष्णु का पूजन करने से उनकी कृपा अवश्य मिलती है
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि वैशाखी पूर्णिमा अथवा पीपल पूनम के नाम से जानी जाती है । प्राचीन काल में वैशाखी पूर्णिमा के दिन दैत्यो द्वारा अपहृत देवताओं का अखंड साम्राज्य श्री हरि विष्णु की कृपा से उन्हें वापस मिल गया था । इसलिए सभी देवताओं ने प्रसन्न होकर इस तिथि को अत्यंत शुभ बताते हुए कहा, ‘यह तिथि समस्त कामनाओं की पूरक, पापों की नाशक, पुत्र, पौत्रादि, धन-धान्य, ऐश्वर्य, यश, कीर्ति, प्रदायक, अतिशय पुण्य तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चारों पुरुषार्थों को देने वाली तथा साम्राज्य देने वाली है ।
यह तिथि श्री हरि को भी प्रिय है । स्वयं भगवान कहते हैं कि जो भी व्यक्ति इस दिन लौकिक कामनाओं को नियंत्रित कर सविधि मेरा पूजन, सत्यनारायण व्रत कथा का श्रवण विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करते हैं, उन्हें मेरी कृपा से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्ति होती है । जो श्रद्धालु इस दिन सहस्त्रनामो से मेरा अभिषेक करते हैं, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें परमधाम की प्राप्ति होती है ।
जो मनुष्य इस दिन ध्यान में लीन होकर मेरा चिंतन व भजन करेंगे, वह कल्याण के पात्र होंगे’ इस संदर्भ में श्री हरि नारद जी ने जिसे कहते हैं, ‘देवर्षि पूर्णिमा तिथि को स्नान, यज्ञ, दान, तप आदि का विशेष महत्व है क्योंकि इस यज्ञ, दान, तप से मनुष्य पवित्र होते हैं । इसलिए निष्काम भाव से यह अनुष्ठान करना चाहिए ।
इसदिन धर्मराज के निमित्त जल से भरे कलश और पकवान का दान करने से गोदान के समान पुण्य प्राप्त होता है ।
मंत्र:
उद्कुम्भोमयादत्तो ग्रीष्मकाले दिने दिने। शीतोदक प्रदानेन प्रीयतां मधुसूदन:।
इसके अलावा शर्करा युक्त सत्तू और तिल युक्त पात्र भगवान विष्णु के निमित्त दान देने का विधान है ।
व्रत विधि:
प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर व्रती श्वेत वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख होकर कुशासन पर बैठकर व्रत का संकल्प लें
ममकायिक वाचिक मानसिक सांसर्गिक
पातक उप पातक दुरिलक्ष्य पूर्वकं श्रुति
स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्तये श्री हरि
प्रीतिं कामनयापूर्णिवा व्रत अहं करिष्ये ।
तदुपरांत चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर मंडलों की स्थापना कर बीच में अष्टदल कमल निर्मित कर उस पर श्री हरि विष्णु का चित्र स्थापित कर नवग्रह गौरी गणेश सहित भगवान विष्णु का धूप, दीप, गंध, अक्षत, फल-फूल मिष्ठान, नैवेद्य आदि से यथोपचार षोडशोपचार पूजन पूर्ण श्रद्धा के साथ करके सत्यनारायण कथा का श्रवण तथा यथाशक्ति श्री हरि नाम अथवा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करना चाहिए तथा अंत में तिल, घी और चीनी से हवन करना चाहिए । तत्पश्चात निम्न मंत्र का जप करते हुए श्री हरि में ध्यान लगाएं:
अच्युतानंद गोविंद नामोच्चारण भेषजात । नश्यंति सकला रोगः सत्यं सत्यं वदाम्यहं ।